दिशाभूल करणाऱ्या जाहिरातींवर तरुणांचे मत

    14-Jun-2022
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वैदेही चव्हाण

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भारत देश हा आपल्या सांस्कृतिक वर्षासाठी ओळखला जातो. अशा देशात अशा जाहिराती करणे चुकीचे आहे. एकीकडे बेटी बचाओ बेटी पढाओ च्या कामात देश अग्रेसर आहे. तर दुसरीकडे आजही देशातील मुली सुरक्षित नाहीत. अशा स्थितीत अशा जाहिराती करणे कोणत्याही स्तरावर योग्य म्हणता येणार नाही. ही जाहिरात पूर्णपणे घसरलेल्या मानसिकतेला चालना देत आहे आणि एक महिला म्हणून मी त्यावर बंदी घालण्यास पूर्ण समर्थन करते.
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उत्कर्ष पोहरकर

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होय, हा फक्त एक प्रसिद्धी स्टंट आहे, जो चुकीचा अर्थ देखील देतो आणि त्याचा प्रेक्षकांवर वाईट परिणाम होऊ शकतो.
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ख्याती सचदेव

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अॅड-ऑनमधील संदर्भ दर्शकांच्या पाहण्यासाठी योग्य नाही. या प्रकाराचा तरुणांवर विपरीत परिणाम होत आहे. अशा गोष्टींचे समर्थन करणे योग्य नाही.
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धनंजय वानखडे

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होय, मला वाटते अशा जाहिरातीची गरज नाही. हा संपूर्ण पब्लिसिटी स्टंट आहे. अशा जाहिरातीमुळे महिलांचा सन्मान आणि प्रतिष्ठा दुखावते.
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अस्मिता पाटील

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अशा जाहिराती बनवणारे आणि पाहणारे सर्वच लोक देशातील तरुणांचे मानसिक स्वास्थ्य बिघडवत आहेत. ही जाहिरातीची घृणास्पद क्रिएटिव्हिटी आहे.
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कल्याणी वरठी
 

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नाही, आजच्या सोशल मीडियाच्या जगात जिथे लोक "फँटसीज" ने ब्रेनवॉश केले जातात. हा पब्लिसिटी स्टंट नसून सुनियोजित जाहिरात आहे.
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आदित्य शिंदे
 

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अशा दुहेरी अर्थ असलेल्या जाहिरातींवर बंदी घातली पाहिजे.आणि जेव्हा असे ऍड्स बनवल्या जातात तेव्हा सरकारने त्यांना लीक होऊ देऊ नये.
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लीना कटरे
 

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आपल्या देशाच्या संस्कृतीसाठी अनुकूल नाही. हा फक्त पब्लिसिटी स्टंट आहे.अशा जाहिरातींवर बंदी आवश्यक आहे. मुलींसाठी ही एक त्रासदायक जाहिरात आहे. यामुळे मुलींना खूप समस्या येऊ शकतात.
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धनुप्रिया रंगारी

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हो तो पब्लिसिटी स्टंट होता. जाहिरात एजन्सीला अशा जाहिराती करून पैसे मिळवायचे असतात. त्यांना कशाचीही पर्वा नाही आणि ही सर्जनशीलता नाही.